मानवजीवन को महकाना Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मानवजीवन को महकाना

मानवजीवन को महकाना
गुरूवार, १७ दिसम्बर २०२०

तू चल चलाकर
अपने पथपर
ना किसीके बुलावेपर
पर अपने सपने साकारकर।

यही है एक रास्ता
जिसका सब को पड़ता है वास्ता
इसका इलाज है बड़ा सस्ता
पर बाकियों की हालत बनी पड़ी है खस्ता।

पथ है कंटक से भरा
पर आत्मा है विश्वास से पूरा
इस धरा को मुक्त कराना है!
बाकीयों को इस संकट से बचाना है।

नहीं दिखता दुर दुर को किनारा
पता नहीं किस से पड़ा है पनारा!
हमने भी तो दे दिया है नारा
अब तो सारा जहाँ है हमारा।

सच और शांति का साथ
आप बंटाए आपका हाथ
शांति ही है एक संभावना
इसी से ही चकेगी मानवता।

हम मानव्, अवगुण से है भरे
पर प्रयास करते है पुरे
विश्व के कई भागो में रहते लोग अधमरे
क्यों ना करे उनके सपनो को पुरे?

शांति का नारा हमने दिया है
हमने अपना पूरा जीवन समर्पित किया है
शांति के दूत बनकर हमने मानवता को चमकाना है
मानवजीवन को और महकाना है।

डॉ जाडिआ हसमुख

मानवजीवन को महकाना
Wednesday, December 16, 2020
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Tulsi Shrestha 17 December 2020

An insightful and innovative creation

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Kumarmani Mahakul 16 December 2020

River serves for all. We should should serve for all. There should be selfless service. Life should carry values and fragrance. An amazing sharing is done.

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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