​कड़कती धुप में शीत-आशियाने याद आते हैं Poem by Raj Rathod

​कड़कती धुप में शीत-आशियाने याद आते हैं

​कड़कती धुप में शीत-आशियाने याद आते हैं
वाह-वाह बहुत खूब में कुछ बहाने याद आते हैं

गीत, ग़ज़ल, किस्से, ये सब 'राज़' की बातें हैं
तुम्हारे रूप में मुझे, खुद के तराने याद आते हैं

तुम्हे भुला कुछ पल तो, ये याद हुआ मुझको
पल भर में कैसे, कितने जमाने याद आते हैं


दिन भर तन्हा रहतेहैं, रातों को तन्हा सोते हैं
जब भी शाम ढलती हैं, तो मैखाने याद आते हैं

Thursday, November 15, 2018
Topic(s) of this poem: heart love,hindi,love,love and dreams,love and friendship,love and life
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Raj Rathod

Raj Rathod

Khargone, India
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