स्वप्न है अंधियारे समझता कोई जुगनू नहीं है
हर किसी से दिल लगाऊं मुझे ऐसा जुनूँ नहीं है
और भी जिस्म है मेरे जिस्म की तसल्ली के लिए
चेहरे देख मोहब्बत करे मुझमे ऐसा खूँ नहीं है
अजनबी लबों पर कैसे लिख दूँ मैं गीत
कलम को गैर की तरन्नुम नहीं है
यूँ नहीं है के तेरे सिवा कोई नहीं है
तुझसे भी खूब है मगर उनमे तु नहीं है
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