अरे! ओ आशिक़ो ओ दीवानों Poem by Raj Rathod

अरे! ओ आशिक़ो ओ दीवानों

अरे! ओ आशिक़ो ओ दीवानों
अरे! ओ खलीफाओं ओ महानों
तुम चाहे जितने भी ख्वाब बून लो
मगर राज़ की एक बात सुन लो
घना अँधेरा है इन राहों में पर कोई रात नहीं है
इस ज़माने में प्रेमियों की कोई औकात नहीं है

अरे! रातों रात जगना पड़ता है
अरे! ना लिखा पढ़ना पड़ता है
अरे! एक पल भी चैन नहीं मिलता
अरे! सच कहता हूँ कुछ भी नहीं मिलता
जिंदगी भर की कमाई दान करना
आशिकी है, जकात नहीं है
इस ज़माने में प्रेमियों की कोई औकात नहीं है

अरे! प्यार हो जाए तो दुनिया खूब ठगती है
अरे! प्यार हो जाए तो भूक भी नहीं लगती है
अरे! न जाने क्या - क्या गटकते रहते हैं
अरे! न जाने कहाँ - कहाँ भटकते रहते हैं
अरे! इतना कुछ होता है ये भी कोई बात नहीं है
इसज़माने में प्रेमियों की कोई औकात नहीं है

Thursday, November 15, 2018
Topic(s) of this poem: heartbreak,hindi,love,love and dreams,love and life
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Raj Rathod

Raj Rathod

Khargone, India
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