तेरी नाराजगी का भी कोई राज़ तो है जाना
तेरीबेरुखीमेंभी थोड़ा प्यार तो है जाना
मैंने देखा है राहों में, तु पलट कर देखती तो है
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प्रेम है सोना, प्रेम है सोना
कभी पाना कभी खोना
जिस्म की मिट्टी है, जीवन का जल है
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जेहन में बसा है महज एक निशां, जो भी है वो फकत तेरी यादों का है
तुमसे होना तो थी मगर हुई ही नहीं, कुछ नशा अधूरी उन बातों का है
तुझसे पहले मैं शेर-ए-गजल भी न था
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फिर से टुटा है दिल, फिर से बिखरा है जिगर
फिर से रूठी हो तुम, फिर से उलझी है नजर
फिर से ख्वाबों में तुम मेरे आने लगी
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अरे! ओ आशिक़ो ओ दीवानों
अरे! ओ खलीफाओं ओ महानों
तुम चाहे जितने भी ख्वाब बून लो
मगर राज़ की एक बात सुन लो
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तु नहीं तो कोई और या नहीं!
कोई और तो कोई और या नहीं!
तेरी बेरुखी को भूलूँ या कोई जवाब दूँ
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सहमा-सहमा दिल चुप-सा है, बैठा है तुझसे आस लिए
सोचता है मन-ही-मन तुम्हे
आँखों में झलक और तेरा एहसास लिए
दर-दर भटके जैसे कोई प्यासा अमृत की आस लिए
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स्वप्न है अंधियारे समझता कोई जुगनू नहीं है
हर किसी से दिल लगाऊं मुझे ऐसा जुनूँ नहीं है
और भी जिस्म है मेरे जिस्म की तसल्ली के लिए
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शीशे में खुद को देख कर कितना इतराती है वो
खुद में खुद को जीति है खुद से शर्माती है वो
कल मिली थी कह रही थी बड़ी मशहूर गायका हूँ,
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कितने शेर कहे खुद का समझ कर
मगर ग़ज़ल का'हासिल'तु ही है
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