मेरे पिताजी Poem by Raj Rathod

मेरे पिताजी

मेरी हार को जीत बनाये
मेरे अधूरे सपने सजाये
गिर जाऊं अगर किस मोड़ पर
तो झुक कर वो मुझे उठाये
वो है मेरे पिताजी

रूठ गया अगर किसी से
खिलौने दिखाकर मुझे हँसाया
चल नहीं पाया गर राहों में
उंगली पकड़ कर चलना सिखाया
वो है मेरे पिताजी

उदास हो गया अगर मैं
मन में ख़ुशी का का फूल खिलाया
बेचेनी हुई अगर रातों में
काँधे पर बिठा कर मुझे सुलाया
वो है मेरे पिताजी

आये दिन अब स्कूलों के
सुहाने सपनों के सिलसिलों के
पिताजी ने मुझे पढ़ाया
मेरे होंसले बुलंद करके
मुझे सबसे आगे बढ़ाया
वो है मेरे पिताजी

मेरे घावों पर मरहम लगाकर
मेरे दर्द को दूर भगाया
लड़ सकूँ स्वयं की चुनोतियों से
इसलिए मुझे दबंग बनाया
वो है मेरे पिताजी

जीवन में ऐसी कहानी भी आयी
चारो तरफ तन्हाई छाई
मगर जब याद पिताजी की आयी
मन में खुशियों की दीवाली आयी

Thursday, November 15, 2018
Topic(s) of this poem: father,father and son,father daughter,love and life
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Raj Rathod

Raj Rathod

Khargone, India
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