मेरी हार को जीत बनाये
मेरे अधूरे सपने सजाये
गिर जाऊं अगर किस मोड़ पर
तो झुक कर वो मुझे उठाये
वो है मेरे पिताजी
रूठ गया अगर किसी से
खिलौने दिखाकर मुझे हँसाया
चल नहीं पाया गर राहों में
उंगली पकड़ कर चलना सिखाया
वो है मेरे पिताजी
उदास हो गया अगर मैं
मन में ख़ुशी का का फूल खिलाया
बेचेनी हुई अगर रातों में
काँधे पर बिठा कर मुझे सुलाया
वो है मेरे पिताजी
आये दिन अब स्कूलों के
सुहाने सपनों के सिलसिलों के
पिताजी ने मुझे पढ़ाया
मेरे होंसले बुलंद करके
मुझे सबसे आगे बढ़ाया
वो है मेरे पिताजी
मेरे घावों पर मरहम लगाकर
मेरे दर्द को दूर भगाया
लड़ सकूँ स्वयं की चुनोतियों से
इसलिए मुझे दबंग बनाया
वो है मेरे पिताजी
जीवन में ऐसी कहानी भी आयी
चारो तरफ तन्हाई छाई
मगर जब याद पिताजी की आयी
मन में खुशियों की दीवाली आयी
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