अलग अलग Poem by M. Asim Nehal

अलग अलग

Rating: 5.0

आरज़ू, हसरतें, तम्मन्ना सब एक ही तो है
फिर क्यों ये अलग अलग परेशां करे हैं?

मंज़िल तो सब की एक ही नज़र आती है हमको
फिर क्यों अपने रास्ते सब अलग अलग करें हैं?

पास तो सबके एक ही घडी है
फिर क्यों ये तक़दीर वक़्त अलग अलग बताती है?

हवा तो फ़िज़ा में एक ही चलती है
सांसों से निकल कर क्यों मर्ज़ अलग अलग बताती है?

एक पेट लिए फिरते हैं हम अपने बदन पर
सौ हसरतों से हम क्यों इसे अलग अलग खिलते हैं?

Friday, November 16, 2018
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
Kezia Kezia 20 August 2020

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है.

0 0 Reply
Akhtar Jawad 21 November 2018

Choolhe ke aage aag jo jalti huzoor hay Jitene hayN noor sab meN yehi khas noor hay (Nazir Akbarabadi)

1 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success