आरज़ू, हसरतें, तम्मन्ना सब एक ही तो है
फिर क्यों ये अलग अलग परेशां करे हैं?
मंज़िल तो सब की एक ही नज़र आती है हमको
फिर क्यों अपने रास्ते सब अलग अलग करें हैं?
पास तो सबके एक ही घडी है
फिर क्यों ये तक़दीर वक़्त अलग अलग बताती है?
हवा तो फ़िज़ा में एक ही चलती है
सांसों से निकल कर क्यों मर्ज़ अलग अलग बताती है?
एक पेट लिए फिरते हैं हम अपने बदन पर
सौ हसरतों से हम क्यों इसे अलग अलग खिलते हैं?
Choolhe ke aage aag jo jalti huzoor hay Jitene hayN noor sab meN yehi khas noor hay (Nazir Akbarabadi)
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है.