सुलग रही है जब तक इस तन और मन में,
प्रेम लगन की ये आग,
ज्योत नहीं हम बुझाने देंगे,
अपनी डफली, उनका राग.
कैसे कैसे नाच नचाये, कैसे कैसे खेल दिखाए,
बस करतब किये जा रहे है,
जब तक तन में बाकी है सांस,
अपनी डफली, उनका राग.
लाज शर्म को छोड़ चुके हैं, त्याग दिया है सम्मान,
हाथ बांध कर शीश झुका कर,
दिए जा रहे हैं मान,
अपनी डफली, उनका राग.
होंठों पर ताला डाला है और सी चुके हैं जीभों को,
मन को भी हमने मारा है,
कहते हैं इसको बलिदान,
अपनी डफली, उनका राग.
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यह एक कटु सत्य है जिसका जितना वर्णन किया जाए उतना कम हैं एक बहुत बेहतरीन वर्णन एक बहुत बेहतरीन कविता के द्वारा