अपनी डफली ~ उनका राग Poem by M. Asim Nehal

अपनी डफली ~ उनका राग

Rating: 5.0

सुलग रही है जब तक इस तन और मन में,
प्रेम लगन की ये आग,
ज्योत नहीं हम बुझाने देंगे,
अपनी डफली, उनका राग.

कैसे कैसे नाच नचाये, कैसे कैसे खेल दिखाए,
बस करतब किये जा रहे है,
जब तक तन में बाकी है सांस,
अपनी डफली, उनका राग.


लाज शर्म को छोड़ चुके हैं, त्याग दिया है सम्मान,
हाथ बांध कर शीश झुका कर,
दिए जा रहे हैं मान,
अपनी डफली, उनका राग.


होंठों पर ताला डाला है और सी चुके हैं जीभों को,
मन को भी हमने मारा है,
कहते हैं इसको बलिदान,
अपनी डफली, उनका राग.

Thursday, July 8, 2021
Topic(s) of this poem: political humor,satire
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
मंत्रियों की आप बीती को दर्शाने का एक प्रयास है इस कविता में I भारतीय राजनीति का एक चरित विश्लेषण भी मान सकते हैं जो स्वतंत्रता के बाद से चला आ रहा है और आज भी जारी है, राज नेता/ प्रधान मंत्री कैसे अपने मंत्रियों को मेवा बांटता है और वो कैसे उसके सामने हाथ बांधे खड़े होते हैं, ये एक ऐसी सच्चाई है जो न बदली है और न ही बदलने वाली है. A satire on Indian political system where the Prime Minister of the nation rules the roost and every other ministers are at his mercy. This poem is about how a minister feels.
COMMENTS OF THE POEM
Sharad Bhatia 08 July 2021

यह एक कटु सत्य है जिसका जितना वर्णन किया जाए उतना कम हैं एक बहुत बेहतरीन वर्णन एक बहुत बेहतरीन कविता के द्वारा

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