जाग स्ट्रेज, कृतिक आया Poem by Krutik Patel

जाग स्ट्रेज, कृतिक आया

योग साधना भूल गये सब, दलदल में ही डूब गये जब।
चला गुरु की बनकर छाया, जाग डाँ. स्ट्रेंज कृतिक आया।।
ज्ञान साधना भूल गये है, राज भवन में खोये है।
माया के बंधन में पडके, वह विलास में खोये है।।
वाँडाराज में भेस बदलकर, कृतिक नाग रुप धरे।
अवेंजर असेंबल मन में धर के, गुरु की ऐसी खोज करे।।
मोहमाया छोड़ छाड के, गुरु को वापस लाया।
जाग डाँ. स्ट्रेंज कृतिक आया।।

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Krutik Patel

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Shahada
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