वाह रे नौजवान Poem by Aftab Alam

वाह रे नौजवान

Rating: 5.0

वाह रे नौजवान
कहाँ गई तेरी शान,
जल रहा है ये देश तेरा
क्यों है यूँ अनजान
वाह रे नौजवान
कहाँ गई तेरी शान....//
उठ उठा ले अब कमान
लेले दुशमनों की जान
मासूमों कि सिसकियों पर
लुटा दे अपनी जान
वाह रे नौजवान
कहाँ गई तेरी शान...... //
क्यों आया है ये तुफान
क्यों जला है ये मकान
क्यों भाइयों ने ली है
अपने भाइयों की जान
वाह रे नौजवान
कहाँ गई तेरी शान......//
पहले हैं हम इंसान
फिर हैं हिन्दू मुसलमान
ऐ हिंद के वासी
ये तेरा अपना हिनदुस्तान
वाह रे नौजवान
कहाँ गई तेरी शान...... //

Friday, September 19, 2014
Topic(s) of this poem: teacher
COMMENTS OF THE POEM
Akhtar Jawad 19 September 2014

Yeh muhabbat ka paigham hay, phail jaye ga, cha jae ga, Naujawanon ko bedar to hone do.

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