• पयादे से मात / आफ़ताब आलम'दरवेश'
मकानों में ऎसे रहतें हैं
जैसे की हम नहीं रह्ते ।
चीख और कराह सुन कर देखा
खुले दरवाजे बन्द होते।
भय की करतूत तो देखिये
पडोसी नहीं सोते तो हम भी नहीं सोते//
जगमगाती रंगीनियों में कह-कहे लगानेवाले
अन्त समय में अपने भी कांधा नहीं देते।
बुद्धिमान प्राणीं की बुद्धि तो देखिये
आम की फ़िराक में हैं कैसे बबूल बोते ।
सतरंजी दुनिया के बाद्शाह, वजीर, किश्ती,
हमनें देखा है पयादे से मात होते।///
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