ना मै उसका भाग्यविधाता, ना मै उसका प्रेम प्रणेता,
ना विचलित उसकी यादों से, ना उसको अपना ह्रदय मैं देता,
फिर भी क्यूँ वो नजर बिछाए, मेरी रहें तकती है,
कब आ कर अपना लूँगा, ये सोच सोच के सजती है,
फिर भी व्यर्थ प्रतीक्षा उसकी, अपने हाथों से करता हूँ,
उसके ज्वलन से भी, चिंता में ना पड़ता हूँ,
उसको अनदेखा करता प्रतिपल, पर फर्क उसे क्यूँ न कुछ पड़ता,
वो सत्य प्रेम की परम पालिका, मई असत्य का पालनकर्ता! ! ! ! ! !
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