तुम बारिश की बूंदों की तरह, हमेशा,
जिन्दगी की तपिश दूर करती रही,
मै अक्खड़ रेत जैसा, हर हवा के झोंके के साथ बिखरता गया,
जो तुम थी चंद लम्हात मुझमे समाई हुई, तब तलक ही तो थमा था मै,
तुम उन बचपन की यादों के जैसी, जो यूँ तो धुंधली है,
न जाने कितनी सच्ची है, मगर जब भी चली आती है,
तो अपने साथ वो मासूम, निर्दोष, सच्ची सी, कच्ची सी,
मुस्कान भी ले आती है.... और मन की गहराईयों में हल्का सा...एक इत्मिनान....
और मै अकेले उन दरख्तों के जैसा, जो लगता है की बहुत ऊंचे है.. और हैं भी बहुत ऊंचे.... सब को लगता है... कि
आसमान चूमते रहते है.... मगर
हकीकत में जितने दूर जमीन से है... आसमानों से भी उतने ही पराये है....
उनके दमन में केवल खानाबदोश सी हवाएं है............
Beautiful write.. Something quiet different..I really loved it.....
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:) Geetha, Thanks a lot!