मै असत्य का पालनकर्ता 5 Poem by Ashq Sharma

मै असत्य का पालनकर्ता 5

मृत्यु को इतने निकट से महसूस करना कभी कितना जटिल लगता था,
तब जीवन कितना अंतहीन, स्वस्थ और सहज लगता था,
प्रतीत होती थी भावनाए स्वच्छ सरिता जैसी,
और मै, सतत, अविरल सा बहता था।

परन्तु, जब से रक्त के रंग से मित्रता की है,
लगता है जग से शत्रुता की है,
पावन से पतित हो गया हू, प्रकृति ने कैसी विचित्रता की है,

आदेश मान कर हर बार, खुद को दास सा रक्खा,
न अपने मन को ही देखा, न अपने प्रेम को समझा,
बूझता भी तो कैसे, जब बूझना चाह ही नहीं,
न कोई आप को चाहे, तो खुद को ही कैसे हर बार ठगता।

नहीं कोई कहानी, जीव स्वमेव है जीता रहता,
उसका मार्ग भले कोई हो, वो हर दम है चलता रहता,
मुझको तुम भले ही भूलो, मै भी चलता जाऊंगा,
तुम तो ठहरे सत्य के रक्षक,
मै असत्य का पालनकर्ता...............

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