A-061. मैं हिंदी हूँ Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-061. मैं हिंदी हूँ

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मैं हिंदी हूँ -18.9.15—4.24PM

मैं हिंदी हूँ
भारत की राष्ट्रभाषा हूँ, हर घर की मातृभाषा हूँ
मैं संविधान में पली हूँ, मैं यहाँ सबसे बड़ी हूँ

बहुत आदर है सम्मान है
देश का भी तो यही फरमान है

इतना प्यार देखकर, मन भर आया है
घर बैठे बैठे, मन बहुत घबराया है

सोचा! ! ! ! थोड़ी सैर ही कर आऊँ

सबसे पहले मैं, संविधान से बाहर निकली
मिल गयी मुझे एक प्यारी से तितली
हाय हाय करती बाय बाय करती
तभी उसकी जुबान फिसली
सॉरी सॉरी करती वह दूर निकल ली

तभी मेरी नज़र
एक चपड़ासी पर फिसल गयी
सूट बूट ऐसे जैसे अंग्रेज की औलाद हो
इंग्लिश टूटी फूटी जैसे वही संवाद हो

मैं वहाँ से भागी स्कूल जा मरी
वहां पहुँच मैं औंधे मुँह गिरी
स्कूल हिंदी का, लिखा इंग्लिश में था
हिंदी मीडियम

मैं हैरान थी परेशान थी
जो भाषा देश की शान थी
उसके दर्द से जनता अनजान थी

बच्चे बोलें डांट पड़ती है
टीचर बोले तो गाज गिरती है
हिंदी बोले तो बच्चे गवाँर हैं
अंग्रेजी बोले तो बच्चे स्मार्ट हैं


विद्यालय से स्कूल हो गया
महाविद्यालय कॉलेज हो गया
विश्व विद्यालय यूनिवर्सिटी हो गया

सब काम अंग्रेजी में करते हो
उसी में अपनी शान समझते हो
गालियां तक तो अंग्रेजी में निकालते हो
माफीनामा भी अंग्रेजी में निपटाते हो
फिर भी हिंदुस्तानी कहलाते हो

तुमने तो सारी दुनिया ही बदल डाली
माँ को मम्मी बना दिया
मम्मी का मतलब भी जानते हो
लाश को संभाल के रखो
तो वो मम्मी कहलाती है
तुमने मुझे भी लाश बना दिया है

इसीलिए तो हिंदी दिवस मनाते हो
जो रोज पूजी जानी चाहिए थी
साल में एक बार धूप बत्ती दिखाते हो
कभी कभी दीप माला भी जलाते हो

यह काम तो केवल लाश के लिए किये जाते है
मरने के बाद स्मरण किये जाते है
तुम कातिल हो तुमने मुझे मारा है
तुमने मुझे मारा है।.... तुमने मुझे मारा है

Poet; Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'

A-061. मैं हिंदी हूँ
Tuesday, May 10, 2016
Topic(s) of this poem: nationality
COMMENTS OF THE POEM
Akhtar Jawad 10 March 2020

A nice thought, though there is no harm in speaking English as its the world language. But in our day to day business we should be proud of speaking our own language, i.e., Hindi, Urdu or Hindustani.

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