हमारा आशियाना
वो याद आती है बातें
साथ में बितायी सुहानी और मीठी बातें
कभी कभी तो रुला देती है
अतीत की और जबर्दस्ती खिंच ले जाती है
ये वर्त्तमान
प्रवर्त्तमान
देदीप्यमांन
कैसे करूँ उसके गुणगान?
वो ही चेहरा घूमकर सामने आ जाता है
बदलता रुख सामने रख जाता है
मुझे पूछता है मैंने क्या किया?
मैंने इतना जल्दी पीछा कैसे छुड़ा लिया?
अब आप ही बताये चोर कोतवाल को डांट रहा है?
रही सही आबरू मिटटी में मिला रहा है
हमने सोचा था दफ़न कर देंगे अपने अतीत को?
यह तो सामने आ रहा है भुत बनकर सताने को!
में इतना कहूंगा की वो दिवास्वप्न था
अपना ही बुना हुआ कल था
खुद का घोंसला कल काम आने वाला था
किसने सोचा कल आनेवाला भी था?
मुझे याद नहीं वो कौन सितमगर था?
जिसने भी किया 'अजगर'सा जालिम था
हमारा आशियाना तो उजड़ गया
परे हमें जीवनभर काफी रंजाड गया
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