सिलसिला Poem by M. Asim Nehal

सिलसिला

Rating: 5.0

मनाना हमें नहीं आता, मानना उन्हें नहीं आता
ये सिलसिला-ए-गुफ्तगू, जारी है

कभी आँखों से छलकती है कभी होठों को दांतों से दबाते है
ये सिलसिला-ए-नाराज़गी, जारी है

छुपा भी नहीं सकते दिल की बात - बता भी नहीं सकते
ये सिलसिला-ए -कश्मकश, जारी है

उठते हैं कभी, कभी बैठ जाते हैं
ये सिलसिला-ए-बेचैनी, जारी है

देखते हैं कभी, कभी छुप जाते हैं
ये सिलसिला-ए-इश्क़ आँखों से, जारी है

गिनते हैं तारे कभी, कभी नींद से जी चुराते हैं
ये सिलसिला-ए-शब, जारी है

वो बांधते हैं फिर खोल देते हैं
ये सिलसिला-ए-ज़ुल्फ़ की कशिश, जारी है

रिश्तों के ताने बाने कहीं, कहीं दोस्ती की मिसाल
ये सिलसिला-ए-दराज़, जारी है

बचपन से जवानी तक और जवानी से बुढ़ापे तक
ये सिलसिला-ए-क़ैद-ए-हयात, जारी है

कहीं जिस्म की ख्वाहिश, कहीं रूह की तमन्ना
ये सिलसिला-ए- मस्लहत, जारी है

Thursday, June 23, 2016
Topic(s) of this poem: life
COMMENTS OF THE POEM
Sharad Bhatia 02 October 2020

सिलसिला यूँही चलता रहे तेरी मेरी मोहब्बत की दास्तान यूँही चलती रहे बंद ज़बां से वो इक़रार कर गए नमः आँखों से हम इंकार कर गए चाहते बहुत थे पर ज़माने के आगे बेबस बन गए एक बहुत - बहुत बेहतरीन नज़्म 100++

0 0 Reply
Rajnish Manga 07 July 2016

आपकी इस बेहतरीन नज़्म में मुहब्बत और ज़िन्दगी के कई पहलु नुमायाँ होते हैं. शुक्रिया, मो. आसिम जी. छुपा भी नहीं सकते दिल की बात - बता भी नहीं सकते ये सिलसिला-ए -कश्मकश, जारी है

4 0 Reply
Akhtar Jawad 27 June 2016

बचपन से जवानी तक और जवानी से बुढ़ापे तक ये सिलसिला-ए-क़ैद-ए-हयात, जारी है Bahut khoobsoorat, pooei nazm raanaion ki tasveer hay.

5 0 Reply
Aarzoo Mehek 23 June 2016

Waah subhanAllaah! Ye silsile jaare rehne dein, ye in mohobaton ke safar ka saathi hain aur yehi zindagi ka mahsal bhi...Inhi kashmakashon se ubhar kar zindagi ko aage le jaana hai...khoobsurat kalaam... aur dilkash andaaz.e bayaan...dheron daad.o tehseen.100 plusssss

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