आ भी जाओ भीड़ में दिल को सुकू आता नहीं Poem by M. Asim Nehal

आ भी जाओ भीड़ में दिल को सुकू आता नहीं

Rating: 5.0

क्यों उम्मीद का दमन पकड़ हम चलते रहे
जब बोलने वाला अक्सर बातों में उलझाये रखा

क्या नशा क्या बेखुदी छायी रही हम पे यूँही
उसने जो वादा किया और हम समझे वो सही

आज जब हम देखते हैं उसको हाथ फैलाये हुए
क्यों तरस आता नहीं और क्यों शर्म जाती नहीं

बाद इतनी ठोकरों के वो तो इतराता रहा
हम समझ पाए नहीं और वो समझ आये नहीं

दूर से भी ये सन्नाटा सदा देता रहा
आ भी जाओ भीड़ में दिल को सुकू आता नहीं

Saturday, November 26, 2016
Topic(s) of this poem: life
COMMENTS OF THE POEM
Mithilesh Yadav 28 November 2016

बाद इतनी ठोकरों के वो तो इतराता रहा हम समझ पाए नहीं और वो समझ आये नहीं Great asim bhai..... Khoobh

1 0 Reply
T Rajan Evol 28 November 2016

Kitna badiya likha hai Asimji

1 0 Reply
Rajnish Manga 26 November 2016

बाद इतनी ठोकरों के वो तो इतराता रहा हम समझ पाए नहीं और वो समझ आये नहीं आपकी हिंदी कविताओं और नज़्मों में भी वही आकर्षण और प्रभाव है जो आपकी अंग्रेजी काव्य में है जैसे कि यह कविता जो जीवन के बहुत निकट है. इसे शेयर करने के लिये धन्यवाद, मो.आसिम जी.

2 0 Reply
Abhilasha Bhatt 26 November 2016

Dard dil se jaata nhi Intzaar khtm hone ka lamha aata nhi Ab aa bhi jao dil se sukoon jata nhi......beautiful poem.... :)

2 0 Reply
Kumarmani Mahakul 26 November 2016

दूर से भी ये सन्नाटा सदा देता रहा आ भी जाओ भीड़ में दिल को सुकू आता नहीं... fine depiction. Beautiful poem shared. Thanks.

1 0 Reply
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