क्यों उम्मीद का दमन पकड़ हम चलते रहे
जब बोलने वाला अक्सर बातों में उलझाये रखा
क्या नशा क्या बेखुदी छायी रही हम पे यूँही
उसने जो वादा किया और हम समझे वो सही
आज जब हम देखते हैं उसको हाथ फैलाये हुए
क्यों तरस आता नहीं और क्यों शर्म जाती नहीं
बाद इतनी ठोकरों के वो तो इतराता रहा
हम समझ पाए नहीं और वो समझ आये नहीं
दूर से भी ये सन्नाटा सदा देता रहा
आ भी जाओ भीड़ में दिल को सुकू आता नहीं
बाद इतनी ठोकरों के वो तो इतराता रहा हम समझ पाए नहीं और वो समझ आये नहीं आपकी हिंदी कविताओं और नज़्मों में भी वही आकर्षण और प्रभाव है जो आपकी अंग्रेजी काव्य में है जैसे कि यह कविता जो जीवन के बहुत निकट है. इसे शेयर करने के लिये धन्यवाद, मो.आसिम जी.
Dard dil se jaata nhi Intzaar khtm hone ka lamha aata nhi Ab aa bhi jao dil se sukoon jata nhi......beautiful poem.... :)
दूर से भी ये सन्नाटा सदा देता रहा आ भी जाओ भीड़ में दिल को सुकू आता नहीं... fine depiction. Beautiful poem shared. Thanks.
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बाद इतनी ठोकरों के वो तो इतराता रहा हम समझ पाए नहीं और वो समझ आये नहीं Great asim bhai..... Khoobh