दर्देजिगर Poem by VirendraVikram Singh

दर्देजिगर

अपना दर्देजिगर, गिलीनजर, रुठाशहर
दिखाना किसको
जब अपना अपना न हो तो
बतलाना किसको
अपनों की हट पर आशियाने का टूटना तो
फिर सुनाना किसको
उनके दिल की शिद्दत से पुरानी यादो का मिटाना तो
फिर इबादत करना किसको
वक़्त से ज्यादा आँसुओ का गिर जाना
सोचता हूँ सम्भालू किसको
यादों से ज्यादा दिलो का बिखर जाना
परेशान हूँ अब निकालू किसको

Friday, November 17, 2017
Topic(s) of this poem: break up,painful,relationships,tears
COMMENTS OF THE POEM
Close
Error Success