बेताज बादशाह Poem by VirendraVikram Singh

बेताज बादशाह

वो हम से खफा हैं
हम उनसे खफा हैं
है कुछ राज जो दिल में दबा है
है कुछ अल्फाज़ जो उसको मालूम नही
उसके बिना ये शाम और सुबह मेरीरजा है
इस नाराजगी के पीछे अहसासो की कहानी है
वो नासमझ गुफ्तगू हमारी बहुत पुरानी है
शायद मैं अब राजा नही, वो रानी नही
सब के लिए ये, सिर्फ एक कहानी है
मगर मेरे दोस्त
घर में बैठी वो मेरी माँ
जिसके मोहब्बत का मैं बेताज बादशाह हूँ
ये बात उसे तुझे और सारे जन्हा को बतानी है

Wednesday, November 22, 2017
Topic(s) of this poem: love,mother
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