VirendraVikram Singh

VirendraVikram Singh Poems

गिरती बिखरती जिंदगी
लड़कर संभलती जिंदगी
ये जिंदगी हर मोड़ पर सजती संवरती जिंदगी,
शर्मोहया को छोड़कर
...

अपना दर्देजिगर, गिलीनजर, रुठाशहर
दिखाना किसको
जब अपना अपना न हो तो
बतलाना किसको
...

वो हम से खफा हैं
हम उनसे खफा हैं
है कुछ राज जो दिल में दबा है
है कुछ अल्फाज़ जो उसको मालूम नही
...

मुझे गुमान था अपने अमीरी पर
ख़रीदे है बहुत जमीर अपने अमीरी पर
बस अब मैं मुफ़्त में बिकना चाहता हूँ
किसी मुफ़लिस का सहारा ना बन सका अपने अमीरी पर
...

जिद्दी बच्चा

मैं तो ख्वाबी हूँ, सपनो में खुद को बाँध रखा है
मेरी सच्चाई मेरे सपनो से झलकती है,
...

हिन्दी सिर्फ एक भाषा नही हमारीमातृत्व की पहचान है
देवताओं का दिया हुआ हमे एक वरदान है
भाषाएँ तो बहुत है यंहा अपनेदिलो के जज्बात कहने को
पर यहकोईअल्फाज नही, अहसासो की एक दुकान है
...

The Best Poem Of VirendraVikram Singh

जिंदगी

गिरती बिखरती जिंदगी
लड़कर संभलती जिंदगी
ये जिंदगी हर मोड़ पर सजती संवरती जिंदगी,
शर्मोहया को छोड़कर
जी ले कुछ पल दिल खोलकर
ये ज़िन्दगी चन्द लम्हों की की
कुछ लम्हे रख ले बटोरकर
कभी शोहरतो में आसमान तो कभी जमीन
ये चढ़ती उतरती जिंदगी,
कंही बचपन तो कंही जवानी
कंही जिम्मेदारिया तो कंही नादानी
ये पहचानती मुकरती जिंदगी,
अगर की है दिलोजान से कोशिश
किसी चाँद को पकड़ने की
तो भूल मत,
कभी रूठी तो कभी होती अपनी ये जिंदगी,
ये जिंदगी सीखा है तुझसे
गिर कर उठना सम्भल कर चलना
कभी अपने लिए कभी औरो के लिए लड़ना
मासूम दिखती है दर्द में जीती ये जिंदगी,
कभी रुलाती कभी हँसाती
कभी गिराती कभी सिर चढ़ाती
ये जिंदगी दर्द की मारी
पर नन्ही और प्यारी ये जिंदगी

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