क्या तुम नहीं जानते मेरी मनस्थिति को
मेरी अंतरात्मा तो तुमारी ही देन है
एक निश्वर शरीर में मेरे तुमने ही दीप जलाया है
और लेकर के फिर इसको
तूफानों में चलने का हुक्म बताया है
कब तलक चलता रहूँ मै इन साँसों के सहारे
ये ज़िन्दगी मै जी रहा हूँ, लेकिन है ये नाम तुम्हारे
क्या बताऊँ, क्या छुपाऊं,
कुछ भी तो नहीं है बस में मेरे
ख्याल भी जो आये, उसे जानते हो तुम
ऑंखें दी साथ में देखने को रौशनी भी दी
कान दिए साथ में सुनने की ताक़त भी दी
नाक दी है की मै सूंघ भी सकू
होश क्यों गुम कर दिए मेरे?
ऑंखें दी साथ में देखने को रौशनी भी दी कान दिए साथ में सुनने की ताक़त भी दी नाक दी है की मै सूंघ भी सकू होश क्यों गुम कर दिए मेरे? ... beautiful expression. Lovely poem shared.Thanks.
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A nice spiritual poem, a bit philosophic................