क्या तुम नहीं जानते मेरी मनस्थिति को Poem by M. Asim Nehal

क्या तुम नहीं जानते मेरी मनस्थिति को

Rating: 3.5

क्या तुम नहीं जानते मेरी मनस्थिति को
मेरी अंतरात्मा तो तुमारी ही देन है

एक निश्वर शरीर में मेरे तुमने ही दीप जलाया है
और लेकर के फिर इसको
तूफानों में चलने का हुक्म बताया है
कब तलक चलता रहूँ मै इन साँसों के सहारे

ये ज़िन्दगी मै जी रहा हूँ, लेकिन है ये नाम तुम्हारे
क्या बताऊँ, क्या छुपाऊं,
कुछ भी तो नहीं है बस में मेरे
ख्याल भी जो आये, उसे जानते हो तुम

ऑंखें दी साथ में देखने को रौशनी भी दी
कान दिए साथ में सुनने की ताक़त भी दी
नाक दी है की मै सूंघ भी सकू
होश क्यों गुम कर दिए मेरे?

Thursday, December 1, 2016
Topic(s) of this poem: life,philosophical
COMMENTS OF THE POEM
Akhtar Jawad 26 August 2018

A nice spiritual poem, a bit philosophic................

1 0 Reply
Kumarmani Mahakul 01 December 2016

ऑंखें दी साथ में देखने को रौशनी भी दी कान दिए साथ में सुनने की ताक़त भी दी नाक दी है की मै सूंघ भी सकू होश क्यों गुम कर दिए मेरे? ... beautiful expression. Lovely poem shared.Thanks.

1 0 Reply
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