क्यों न बादल बन के बरस जाओ कभी
के ये आँगन कब से तुम्हारे इंतज़ार में है
दिल में कितने बीज प्यार के बोये है हम ने
मुद्दत से ये शरीर पानी की फ़िराक में है
इन सूखती आँखों में अँधेरा होने से पहले
बिजली बन कड़को के ये नूर कि तलाश में है
ये मौसम ये बहार पुकार पुकार के कह रही है
जानेमन आ भी जाओ के अब जी दुष्वार में है
वाह वाह बादल बरसने को है घटा घनघोर है लगता है जैसे इस दिल में प्यार होने को है
दिल से लिखी हुई कविता ऐसा लगा जैसे आपने हमारे दिल की बात भी कहती हो जब बरखा बरसती है और बूंदे धन को भी होती है तो मन में कई इच्छा है जाग उठती है इन प्रबल इच्छाओं को हर मनुष्य अपनी अपनी तरह से जाहिर करता है, मन में इच्छा है जगाने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
Num mausam ka luft uuthaiye Chalakti baharon ka taran gungunaye Mausam Khushnuma hai bahut Fir se jee lijiye wo pal khas Jinhe kabhi dhoonda karte the aap... behtareen kavya shrinkhla. Aabhar.
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ओये बदरा अब तो बरस जा, मेरा ज़िया तेरे इंतजार मे हैं।। कर रहा हूँ तुझसे फ़रियाद, क्यूंकि मैं सूखा खड़ा हुआ हूँ।। एक बेहतरीन ग़ज़ल एक बहुत बेहतरीन कविता के सरताज के द्वारा निसंदेह आप शब्दों के जादूगर हैं, शब्द आपको देख कर मुस्काने लगते हैं आभार आपका जो आपने इतनी बेहतरीन रचना से हम सबको मंत्र मुग्ध किया 10000 ++*****