ये आँगन कब से तुम्हारे इंतज़ार में है Poem by M. Asim Nehal

ये आँगन कब से तुम्हारे इंतज़ार में है

Rating: 5.0

क्यों न बादल बन के बरस जाओ कभी
के ये आँगन कब से तुम्हारे इंतज़ार में है

दिल में कितने बीज प्यार के बोये है हम ने
मुद्दत से ये शरीर पानी की फ़िराक में है

इन सूखती आँखों में अँधेरा होने से पहले
बिजली बन कड़को के ये नूर कि तलाश में है

ये मौसम ये बहार पुकार पुकार के कह रही है
जानेमन आ भी जाओ के अब जी दुष्वार में है

Tuesday, October 13, 2020
Topic(s) of this poem: love,rain drops
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Today its raining and I got wet, it inspired me to write something on Rain.
COMMENTS OF THE POEM
Sharad Bhatia 14 October 2020

ओये बदरा अब तो बरस जा, मेरा ज़िया तेरे इंतजार मे हैं।। कर रहा हूँ तुझसे फ़रियाद, क्यूंकि मैं सूखा खड़ा हुआ हूँ।। एक बेहतरीन ग़ज़ल एक बहुत बेहतरीन कविता के सरताज के द्वारा निसंदेह आप शब्दों के जादूगर हैं, शब्द आपको देख कर मुस्काने लगते हैं आभार आपका जो आपने इतनी बेहतरीन रचना से हम सबको मंत्र मुग्ध किया 10000 ++*****

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Deepak S S 14 October 2020

वाह वाह बादल बरसने को है घटा घनघोर है लगता है जैसे इस दिल में प्यार होने को है

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Mamta S 13 October 2020

दिल से लिखी हुई कविता ऐसा लगा जैसे आपने हमारे दिल की बात भी कहती हो जब बरखा बरसती है और बूंदे धन को भी होती है तो मन में कई इच्छा है जाग उठती है इन प्रबल इच्छाओं को हर मनुष्य अपनी अपनी तरह से जाहिर करता है, मन में इच्छा है जगाने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद

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Varsha M 13 October 2020

Num mausam ka luft uuthaiye Chalakti baharon ka taran gungunaye Mausam Khushnuma hai bahut Fir se jee lijiye wo pal khas Jinhe kabhi dhoonda karte the aap... behtareen kavya shrinkhla. Aabhar.

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