कौन कहता है की हम दोनों जुदा जुदा हैं
रात में उजाला और सुबहा में अँधेरा ऎेसा होता कहाँ हैं
मिल गयी हैं नज़रे तो दिल भी मिल जायेंगे
लोग समझते हैं अक्सर, मगर ऎेसा होता कहाँ हैं
तस्वीर संग खीचने से किसके मिज़ाज मिलते हैं
दोनों के चेहरे हँसते हों ऎेसा होता कहाँ हैं …
बाद कोशिशों के उम्मीद भी दम तोड़ देती हैं अक्सर
हर कोशिश का अंजाम मिल जाये ऎेसा होता कहाँ हैं
अदालतें मुकद्दमा तो लगा देती हैं उनपर
गुनहगार को मिल जाये सज़ा ऎेसा होता कहाँ हैं
गिरेबान में झांक कर तो देख लिया तूने ए "आशी "
रूह और जिस्म का रिश्ता समझ में आ जाये ऎेसा होता कहाँ हैं.
बहुत ही सरल भाषा में अपने जीवन की गहराई को अपने अनुभव से नापा है इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है
बहुत सही फरमाया आपने जीवन में हम जो चाहते हैं ऐसा होता कहां है और जो कुछ होता है उन पर हमारा नियंत्रण कहां है हम बहुत कुछ चाहते हैं जीवन से हमारी अपेक्षाएं अनगिनत हैं और कई रूप में है मगर सच्चाई यह है कि हमारी चाहत वह कभी भी रूपरेखा नहीं मिलती
Bahut khoob kah gaye janab aap Aagar jindagi ho etni aasan To ji na lete sab Samay lagta hai Raang ko bhi chadhne me Jindagi to logoon ko samajhna hai.
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
बाद कोशिशों के उम्मीद भी दम तोड़ देती हैं अक्सर हर कोशिश का अंजाम मिल जाये ऎेसा होता कहाँ हैं...This poem is very sensitive and thought provoking poem brilliantly penned..5 stars