ऎेसा होता कहाँ हैं? Poem by M. Asim Nehal

ऎेसा होता कहाँ हैं?

Rating: 5.0

कौन कहता है की हम दोनों जुदा जुदा हैं
रात में उजाला और सुबहा में अँधेरा ऎेसा होता कहाँ हैं

मिल गयी हैं नज़रे तो दिल भी मिल जायेंगे
लोग समझते हैं अक्सर, मगर ऎेसा होता कहाँ हैं

तस्वीर संग खीचने से किसके मिज़ाज मिलते हैं
दोनों के चेहरे हँसते हों ऎेसा होता कहाँ हैं …

बाद कोशिशों के उम्मीद भी दम तोड़ देती हैं अक्सर
हर कोशिश का अंजाम मिल जाये ऎेसा होता कहाँ हैं

अदालतें मुकद्दमा तो लगा देती हैं उनपर
गुनहगार को मिल जाये सज़ा ऎेसा होता कहाँ हैं

गिरेबान में झांक कर तो देख लिया तूने ए "आशी "
रूह और जिस्म का रिश्ता समझ में आ जाये ऎेसा होता कहाँ हैं.

COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 17 October 2020

बाद कोशिशों के उम्मीद भी दम तोड़ देती हैं अक्सर हर कोशिश का अंजाम मिल जाये ऎेसा होता कहाँ हैं...This poem is very sensitive and thought provoking poem brilliantly penned..5 stars

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T Rajan Evol 16 October 2020

बहुत ही सरल भाषा में अपने जीवन की गहराई को अपने अनुभव से नापा है इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है

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Mamta S 16 October 2020

बहुत सही फरमाया आपने जीवन में हम जो चाहते हैं ऐसा होता कहां है और जो कुछ होता है उन पर हमारा नियंत्रण कहां है हम बहुत कुछ चाहते हैं जीवन से हमारी अपेक्षाएं अनगिनत हैं और कई रूप में है मगर सच्चाई यह है कि हमारी चाहत वह कभी भी रूपरेखा नहीं मिलती

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Varsha M 16 October 2020

Bahut khoob kah gaye janab aap Aagar jindagi ho etni aasan To ji na lete sab Samay lagta hai Raang ko bhi chadhne me Jindagi to logoon ko samajhna hai.

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