तुमको सूचित हो Poem by Ashq Sharma

तुमको सूचित हो

महत्व इर्ष्या का भी था, महत्त्व था प्रेम का भी, ये सूचित है हमें,
राग रंजित थे, श्रृंगार वर्जित थे, ये सूचित है हमें,
कुछ जातक जो विचित्र हो गए थे सत्ता के अहंकार में,
वो महत्वहीन मुर्दे है, तुम विचलित ना हो..............
इस तर्क का रहस्य ज्ञात है बन्धु तुमको भी, हमको भी, उन को भी ज्ञात हो जाएगा... तुमको सूचित हो! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! '

COMMENTS OF THE POEM
Geetha Jayakumar 22 August 2013

Aapki Kavitha bahuth acchhi hai..Loved reading it.

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