प्रेम का यह जुलूस Poem by M. Asim Nehal

प्रेम का यह जुलूस

Rating: 5.0

रात चांदनी बिखेर रही थी
शबनम की बूंदे धरती को भिगो रही थी
तारों की बरात के बीच दो दिल
भीड़ से दूर, किसी तालाब के किनारे
टिम टिमाते जुगनू को निहार रहे थे

ऐसा लगता था मनो चारो ओर प्रेम ही प्रेम बरस रहा है
धरती के सभी प्राणी प्रेम में तृप्त,
संतोष का एहसास कर रहे थे
रात भी अपने में मस्त, मस्ती में नाच रही थी

आँखों ने ऐसा समां पहले कभी नहीं देखा था
मन कोइतनी शांति कभी नहीं मिली थी
जीवन इतना आनंदित पहले कभी नहीं हुआ था
लगा जैसे वक़्त यही रुक जाये सदा के लिए
और मैं कामना करता हूं कि
प्रेम का यह जुलूस अनंत काल तक
हमेशा-हमेशा तक चलता रहे

Tuesday, October 20, 2020
Topic(s) of this poem: love and dreams
COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 21 October 2020

Eyes had never seen such procession of love before. The procession was going on in moonlight at night with deep emotion. Let this flame of procession of love glow up to infinite time. This poem is very brilliantly penned..5 stars..

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T Rajan Evol 20 October 2020

ओस की बूंदों से धरती जब नहा रही है और चांदनी भीखेरती हुई किरणें उन बूंदों को शीतल मना रही है तो प्रेम कैसे वंचित हो सकता है बहुत खूब बहुत खूब

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T Rajan Evol 20 October 2020

मजा आ गया पढ़कर ऐसा लगा मानो जैसे किसी स्वर्ग का वर्णन किया जा रहा हूं प्रेम सुख शांति और बस कोई द्वेष वेयर इज 4 कुछ नहीं प्रेम प्रेम की नदियां चारों और हर्ष और उल्लास का माहौल वाह ऐसा लगा जैसे बस हम भी हां बस बहुत-बहुत धन्यवाद आसिम जी आपका

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Mamta S 20 October 2020

प्रेम की बरखा बरस रही हो आनंद ही आनंद प्रेम ही प्रेम शांति ही शांति और ऐसे में मनुष्य को और क्या

1 0 Reply
Mamta S 20 October 2020

ट प्रेम में सिर्फ जीवन का एक बेहतरीन वर्णन आपने इस कविता में किया है यह कविता मुझे अति पसंद आई

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