रात चांदनी बिखेर रही थी
शबनम की बूंदे धरती को भिगो रही थी
तारों की बरात के बीच दो दिल
भीड़ से दूर, किसी तालाब के किनारे
टिम टिमाते जुगनू को निहार रहे थे
ऐसा लगता था मनो चारो ओर प्रेम ही प्रेम बरस रहा है
धरती के सभी प्राणी प्रेम में तृप्त,
संतोष का एहसास कर रहे थे
रात भी अपने में मस्त, मस्ती में नाच रही थी
आँखों ने ऐसा समां पहले कभी नहीं देखा था
मन कोइतनी शांति कभी नहीं मिली थी
जीवन इतना आनंदित पहले कभी नहीं हुआ था
लगा जैसे वक़्त यही रुक जाये सदा के लिए
और मैं कामना करता हूं कि
प्रेम का यह जुलूस अनंत काल तक
हमेशा-हमेशा तक चलता रहे
ओस की बूंदों से धरती जब नहा रही है और चांदनी भीखेरती हुई किरणें उन बूंदों को शीतल मना रही है तो प्रेम कैसे वंचित हो सकता है बहुत खूब बहुत खूब
मजा आ गया पढ़कर ऐसा लगा मानो जैसे किसी स्वर्ग का वर्णन किया जा रहा हूं प्रेम सुख शांति और बस कोई द्वेष वेयर इज 4 कुछ नहीं प्रेम प्रेम की नदियां चारों और हर्ष और उल्लास का माहौल वाह ऐसा लगा जैसे बस हम भी हां बस बहुत-बहुत धन्यवाद आसिम जी आपका
प्रेम की बरखा बरस रही हो आनंद ही आनंद प्रेम ही प्रेम शांति ही शांति और ऐसे में मनुष्य को और क्या
ट प्रेम में सिर्फ जीवन का एक बेहतरीन वर्णन आपने इस कविता में किया है यह कविता मुझे अति पसंद आई
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Eyes had never seen such procession of love before. The procession was going on in moonlight at night with deep emotion. Let this flame of procession of love glow up to infinite time. This poem is very brilliantly penned..5 stars..