मेरी मंजिल तु ही है Poem by Raj Rathod

मेरी मंजिल तु ही है

कितने शेर कहे खुद का समझ कर
मगर ग़ज़ल का'हासिल'तु ही है


वक़्त के भँवर में फसा हुआ हूँ मैं
रंजिश ये है के साहिल तु ही है

तुझ तक पहुँचाने को कोई राह नहीं है
फिर भी न जाने क्यूँ मेरी मंजिल तु ही है

Thursday, November 15, 2018
Topic(s) of this poem: love,love and dreams,love and friendship,love and life,heart love,hindi
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Raj Rathod

Raj Rathod

Khargone, India
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