मुक्तक सीरीज़ (प्रथम) Poem by Raj Rathod

मुक्तक सीरीज़ (प्रथम)

कभी बहुत करीब, कभी बहुत दूर हो जाना
मेरे दिल के अरमानों का चूर-चूर हो जाना
ये दुनियां और सच्चे इश्क के बिच अनबन है
तुझे मजबूर कर देना मेरा मजबूर हो जाना

टूटे बिखरे इस जिस्म में अब जान जरुरी है
काया के कोरे कागज़ पर तेरे निशान जरुरी है
रफ्ता-रफ्ता बंजर-सी होती जा रही है जिंदगी
जान! मुझमे जान के लिए तेरा एहसान जरुरी है

जिस्म दूर रखकर क्यों, दिल के इतना पास रहती हो
मेरी जान लेकर, जान! क्यों इतना बेजान रहती हो
ना तो अब होश रहता है ना ही अब चैन पड़ता है
मैं खुद को भूल जाता हूँ मगर तुम याद रहती हो

तुम्हारे साथ हूँ खुद को अकेली क्यूँ समझती हो
स्याह रातों को खुद की हाँ सहेली क्यूँ समझती हो
तेरी जुल्फों के जब साये तले हर 'राज़' सुलझाए
खुद को फिर इक अनसुलझी पहेली क्यूँ समझती हो!

पीछा तेरा करता हूँ जो प्यार है कोई प्रचार नहीं है
तेरा दिल कुछ कहता है या अभी कोई विचार नहीं है
एक फैसलें पर टिकी है जिंदगी तेरे दिल की धड़कन के
ख्वाबों में क्यूँ आता है? जब तुझको मुझसे प्यार नहीं है

तेरे जिस्म की चादर ओढ़ कर सो जाना गजब का था
मृदुल मिट्टी में गाड़ कर बीज बो जाना गजब का था
माना सब अल्पनाएं थी जो हुआ स्वप्न में हुआ लेकिन
नफरत दिखने वालों का बाँहों में खो जाना गजब का था

प्रेम नगरी में कोई जात - पात नहीं करता
खुद्दार लोग रहते हैं कोई मरने से नहीं डरता
बहुत कठिन है पाना तुझको जानता हूँ लेकिन
दिल जिद्दी है सिवा तेरे किसी की बात नहीं करता

थकी पलकें जग रही है दरश तुम्हारा पाने को
हृदय धड़कन तड़प रही है तेरे हृदय में मचल जाने को
प्रीत का गीत होंठों पर लेकर कभी तो आओ स्वप्नों में
तन्हा बाहें तरस रही है तुझसे लिपट सो जाने को

कलि का खिलना बाकी है भौरे का तरसना बाकी है
जायज है धरती की बेचैनी बादल का बरसना बाकी है
तुम हो झरनों की धारा-सी और एक प्यासी नदी हूँ मैं
नदी के हौंठ प्यासे हैं झरनों का झरसना बाकी है

दिल बर्बाद हो रहा है अब तो पास आ जाओ
अँधेरा आबाद हो रहा है अब तो पास आ जाओ
नयन और पलकों के बिच सिमटा हुआ है समंदर
प्रेम पक्षी आजाद हो रहा है अब तो पास आ जाओ

भीतर-भीतर आंसू पीकर मुस्कुराना मुश्किल है
प्याले में गरल है माना किन्तु प्यासा रह पाना मुश्किल है
बहुत सरल है राख़ में मिलना, मिलकर खाक हो जाना
तुझे किसी और का कह कर जी पाना मुश्किल है

तड़पता रहा तमाम रोना सिख लिया मैंने
यादों के आगोश में खुद को खोना सिख लिया मैंने
नफरत रही थी बचपन से, रम और मयखाने से
तेरी बेवफाई के मंजर में पीना सिख लिया मैंने

कहीं पर प्रकाशित कर रहे दीप कहीं पर घोर अंधियारा है
कहीं पर मावस की काली रातें कहीं पर सुनहरा सवेरा है
पल भर में खुदा तूने कितने पल बिखेरे हैं
कहीं पर है खुशियों की सौगातें कहीं पर ग़मों का बसेरा है

तुम्हे दुनिया से चुराया था तुम्हे अपना बनाया था
तेरी हर खता को मैंने अपने दिल से लगाया था
अब क्यों आई हो बेवफा, वफ़ा का प्रस्ताव लेकर तुम
बड़ी देर लगी, बड़ी चोट लगी, मुश्किल से भुलाया था

जग लेता हूँ तमाम रात मगर सोना नहीं आता
सह लेता हूँ सब घूंट - घूंट कर रोना नहीं आता
हमारी और तुम्हारी दास्ताँ में बस फर्क इतना है
तुम्हे पाना नहीं आता मुझे खोना नहीं आता

मैं सब कुछ बाट लेता हूँ, तेरी यादें नहीं बटती
दिल में खजुराहों की प्रतिमा है हटाने से नहीं हटती
बैठ कर तेरी गलियों में दिन तो गुजार लेता हूँ
अक्सर तन्हाई में मगर मुझसे रातें नहीं कटती

भिगो के गम के दरिया से कोई अरमान ले आये
हथेली पर सजा कर कोई खुद की जान ले आये
प्रेम की राह पर दिन भर भटकता हूँ मैं अजनबी
कोई तो जान ले आये कोई तो जान ले जाए

लोगकहतेहैं मैं कवी हूँ
मुझे भी भ्रम है मैं कवी हूँ
मैं इसलिए नहीं लिखता के मैं कवी हूँ
मैं लिख देता हूँ इसलिए मैं कवी हूँ

जो कल हुआ या होना है उसे आज लिखता हूँ,
मैं टूटे हुए दिल की आवाज लिखता हूँ,
यूँ तो वाकिफ नहीं खुद के ग़मों से मगर,
लोग कहते हैं मैं 'राज का राज़' लिखता हूँ।

तेरे दिल में छुपा है जो, राज का राज़ है,
तुम मुझसे कह नहीं पाती, राज का राज़ है,
नींद-ए-सुकूँ सोती थी तुम अक्सर तन्हा रातों में,
गहरी नींद में तेरा मचलना राज का राज़ है।

बैठे-बैठे लिखता रहा मैं औरों की पीर पेराई को,
कोई नहीं जान पाया मगर"राज़" की गहराई को,
कीचड़ ही उछलता है सदा स्वच्छ बदन के अंगों पर,
खिलता कमल देखा सबने न देखा कली मुरझाई को।

कुछ जख्म है इस दिल पर जिन्हें छिपाता फिरता हूँ,
तुम्हारे प्यार के किस्से दुनिया को सुनाता फिरता हूँ,
मेरे इश्क़ की सच्चाई को स्वीकार किया ज़माने ने,
इसीलिए तेरी बेरुखी चंद रुपयों में गाता फिरता हूँ।

जो गीत केवल तेरे लिए लिखे सम्मुख तेरे कभी गा न सका,
दिल को तेरी लत कैसी है तुझे यह भी कभी समझा न सका,
तुझको दुनिया का डर था मुझको तेरे बिछड़ जाने का डर,
तु भी मुझे कुछ बता न सकी और मैं भी तुझे कुछ बता न सका।

Thursday, November 15, 2018
Topic(s) of this poem: heart,heart love,heartbreak,hindi,love,love and dreams,love and friendship,love and life
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Raj Rathod

Raj Rathod

Khargone, India
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