ना शहरों में
ना महलों में
ना भीड़ के घेरों में
हम रहते हैं
गाँव के बसेरों में
खिल-खिलाती रौशनी से
प्यार से मस्ती से
हम पल-बढ़कर आगे बड़े
गाँव की बस्ती से
जब बैठती है बुजर्गों की टोली
बच्चे भी मिलकर करे ठिठोली
सबसे पहले सूरज आ कर डेरा डाले
गन-गुनाती है कोयल की बोली
बच्चा - बच्चा झूम उठता
मौसम की शहनाई पर
प्रति दिन त्यौहार-सा माहौल
छाया रहता
धरा की हरियाली पर
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem