लक्ष्य Poem by Raj Rathod

लक्ष्य

लक्ष्य मेरे बहुत से हैं
कुछ करके ही नहीं रुक जाऊंगा
आज किनारों पर हूँ मैं
कल सितारों में यूँ छा जाऊंगा

अपने साहस के दम पर मैं
मंजिलें बहुत-सी छू जाऊंगा
चाँद पर जाकर ठहरूँगा
कहीं तारों में गिना जाऊंगा

आँधियों से लड़ रहा हूँ मैं
नदियां तैर कर जाऊंगा
गर मिली पर्वतों की चुनोती
पर्वतों को भी लाँघ कर जाऊंगा

भयानक मुश्किलों के सामने
यूँ ही कैसे झुक पाउँगा
मैं तो आजाद परिंदा हूँ, लोगो
पिंजरे में घुट कर नहीं जी पाउँगा

बढ़ते रहेंगे मेरे कदम
चाहे धूप में तप जाऊंगा
मैं कोई बुझी आंधी नहीं हूँ, जो
झोंखा देकर ही थम जाऊंगा

माना लक्ष्य की डगर कठिन है
मगर मेरे सपने हसीन है
हारना तो है एक दिन जिंदगी से
मैं जीते-जी नहीं हार पाउँगा
"मेरा लक्ष्य है जो, मैं उसे पाउँगा"

Thursday, November 15, 2018
Topic(s) of this poem: hindi,lifestyle
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Raj Rathod

Raj Rathod

Khargone, India
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