सामने खड़े बुढ़े पीपल के पेड़ पर कांव कांव के शोर से सारा महौल कौवाई कौवाई सा हो रहा था । आस पास के लोग इसे शुभ- अशुभ से जोड़ रहे थे । कुछ कौए मुंडेरों पर बैठ कांव - कांव, मेहमानों के आने के संकेत दे रहे थे। फिर ये जाना कि कौओं की बैठकी थी और विषय था: कौए कोयलों से बेहतर क्यों? सबसे ऊंची डाल पर उनका सरदार जतरू बैठा बहुते गर्व से इधर उधर देख रहा था, जिधर देख रहा था उधर कौओं को ही देख रहा था और सारे कौए सरदार जतरू को।“ मज़लिस शुरू होती है –मंच संचालक कौलू जोरदार कर्कस आवाज़ में बोला – आज की इस पावन बेला में सर्वप्रथम हम सब मनुष्य कोसक गीत से कार्याक्रम का आगाज़ करेंगे उसके बाद हम सब मिलकर मनुष्यों की बुद्धी के खिलाफ जोरदार भ्रथसना करेंगे फिर आज के विषय पर चर्चा होगी – “
काफी जोरदार-धारदार हंगामा हुआ और अब जतरू को सम्बोधन करना था जो बहुत ही ध्यान से आंखे बंद किए सब कुछ सुन रहा था – आंखे खोल कर सभों को निहारता है मुसकुराते हुए - -
मित्रो, मन प्रसन्न हुआ, गदगद हुआ -पृथ्वी नाशक कीट; ये मनुष्य, जो अपनी जाति क्या धरती का भी शत्रु है, हमें, हमें मुर्ख समझता है; धुर्तता की सीमा लांघने वाला ये जीव तनिको सम्मान के लाइक नही है । आग जलाए रखो - - -
हमें इस बात का गर्व है कि कोयल जिसे पृथ्वी नाशक इंसान सूरों की मल्लिका समझता है, उसका सेना , परवरिश करना हमारे हाथो ही होता है, उस बेलुरी कोयल को गाना गाने के अलावा आता ही क्या है, अरे एक बात जरा ध्यान से सुनो – हमें गर्व है कि हमरी बिरादरी कोयलों की जशोदा मैय्या है, हम उनका पलनहार हैं, हम मुरख नाहिं हम सब जानत हैं कि ये कोयलिया चुपके छुपके हमरन नीड़ में अंडा रख कर भाग जावत हैं ये हम सब को मालूम है, दुसरे के अंडडों को सेना, उनको पालना; अह - ये तो मालिक का हम पर असीम कृपा है जो मालिक ने दिया है - ये त्याग है - गैर को अपनाने का, पालने का – हाँ अगर वो अच्छा गाती हैं तो हमरे कारण – “ हम राजा और वो दरबारी “ ये दरिद्र मनुष्य त्याग , बलिदान को कैसे जाने – दूसरे को क्यों अपनाए, अरे ये तो अपने ही लोगों का खून करते हैं ये विषधर जल थल वायु सब को विष से भर रहा है। हम लोग तो धरती से विष को कम करते हैं ।कोयल हमसे बेहतर नहीं क्योंकि कोयल हमारी कर्कसता से ही अपने कण्ठ को मधुर बनाते है,
“कोयलों की गीतों में कौओं का त्याग है, मनुष्य इसे भला क्या समझेगा। “
अब सभा का अंत होता है - जय जशोदा मैय्या की
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Through this crow convention, a power punch satire on man and his hostility towards his own fellow beings has been penned. Thanks.