अहिल्या सी मूरत/Ahilya sii murat Poem by Aftab Alam

अहिल्या सी मूरत/Ahilya sii murat

Rating: 5.0

मेरे दिल में टंगी तस्वीर को कैसे उतारोगी,
तेरे दिल में बसा हूँ मैं, इसे कैसे निकालोगी,
प्रेम का खेल भी ऐसे भला तुम कैसे खेलोगी,
नहीं आसाँ है ये उलफत, भला तुम कैसे भुलोगी,
समुंदर नाप आये हम, आस्माँ छू लिया हमने,
फंसी मझधार में किश्ती, इसे कैसे सम्भालोगी,
परिंदे मारते हैं पर याद ताज़ा तू अब तो कर,
तुझे भूला नहीं हूँ मैँ, मुझे तुम कैसे भुलोगी,
मेरे ख्वाबों में तू रहती, तेरे ख्वाबों में मैं रहता,
ना जाने है बना कैसे तेरा मेरा ये रिश्ता,
हवाओं से तू खेली थी आग से मैं भी खेला था,
तेरी तन्हाई में मैं भी अकेला ही अकेला था,
कभी हम भी तो झूले थे ख्वाबों के उस झूले में,
कभी मुझको झूलाती थी, कभी तुझको झूलाता था,
बनी कब तक रहोगी तुम अहिल्या सी मूरत बन,
मैं आया हूँ तुझे छूने बता तू अब तो बोलोगी..
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©2015 Aftab Alam Khursheed. All rights reserved

Wednesday, February 11, 2015
Topic(s) of this poem: poem
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