है कौन सी वो राह जिसमे कांटे नहीं बोए गए/hindi Poem by Aftab Alam

है कौन सी वो राह जिसमे कांटे नहीं बोए गए/hindi

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है कौन सी वो राह जिसमे कांटे नहीं बोए गए
है कौन वो इंसान जिसके दामन नहीं धोए गए

मैं अंधेरे में बेपनाह ऊजाला देख सोंचता हूँ,
हवस की आँखो से कई बार घर जलाए गए

एक शराबी ने मुझ से कहा, जरा संभल कर चलना
ये सड़क नहीं अब आजाद परिंदों के लिये

खामोश डरावनी चीखों से परेशान हूँ मैं
ये वक़्त नहीं अब घरों में बैठने के लिये

मेरा कुत्ता मुझे देख ना जाने क्यों भौंकता है
लुटेरे ही शायद हमारे अब जजमान हो गए

कुड़ेदान में जिंदगी ढूँढते ईंसानो से अब मैं जाना
गरीबों के खाकर ना जाने कितने हैवान हो गए

Friday, March 28, 2014
Topic(s) of this poem: political
COMMENTS OF THE POEM
M Asim Nehal 26 May 2021

Bahut khoob. Kya baat hai, Zindagi ki sachchayi kis khubi se bayan ki hai aapne, Deron Daad.

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