वो झूठ बोल कर जीतता गया, मैं सच का दामन पकड़े रहा ।
वो मुझको हमदर्दी दिखाता गया, मैं दुश्मन को दांव सिखाता रहा।
वो कबिल था, मैं आशिक था, वो मंसूबे छिपाता गया, मैं दिल का हाल बताता रहा ।
वो तजुर्बेकर था, मैं वाजिब था, वो हासिल करता गया, मैं काबिल बनता रहा ।
उसे दुनियादारी की समझ थी, मैने इंसानियत सीखी थी, वो साजिशें करता गया, मैं नजर् अन्दाज करता रहा ।
सुना था उसके यहां देर है अन्धेर नहीं, मगर इस देर ने पूरी उम्र ली, मैं ताउम्र इंतज़ार करता रहा।
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Seems A refined poetic imagination, Vibhor Jain. You may like to read my poem, Love And Iust. Thank you.