प्रणय प्रसंगिनी बन कर
जब से तेजी आईं जीवन में
शोक हर्ष से हार गया तब
फिर कविता उपजी थी मन में
दुविधायें सुविधायें बनकर
चहक उठी थी आंगन में
अमित-अजित की आभा से
कवि पिता रुप में थे जन्में
तेजी ने जब सहयोग दिया
कैम्ब्रिज जाकर तब शोध किया
राक्षस कितने ही आये पर
तुमने उनका प्रतिरोध किया
इस जीवन को ही युद्ध मान
जीना फिर से प्रारंभ किया
फिर इलाहाबाद को छोड दिया
अब दिल्ली को प्रस्थान किया
प्रणय प्रसंगिनी बन कर
जब से तेजी आईं जीवन में
कवि बच्चन ने एक बार फिर
कविता का था वरण किया ।
अभय भारती(य) ,24 जनवरी 2009 08.27 प्रातः
कुछ एक कवितायें मैने अभय भारती(य) के नाम से लिखी थीं यह उनमें से एक है ।
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A great tribute to the author beautifully penned with well decorated emotions.