पसेमंज़र भी है ग़ुरूब भी है
नज़र के सामने होकर
वो दिल से दूर भी है
जो छू ता हूँ तो सिमट जाती है
जो देखू गर तो शर्माती है
मिलके भी जो न मिटी एक प्यास है वो
ख़ामोशी का सदा एहसास है वो
सोये में नज़र आती है और जागे में गुमं है
न जाने किस शायर के पास है वो (जाने किस शायर के तस्सव्वुर का ख्वाब है वो)
बेवजह मुस्कुराती है कभी वजह पे रुलाती है
किस अदाकार का जज़्बात है वो
उड़ जाती है तितली बन के कभी
कभी शाहीन सा लेती है परवाज़ भी वो
समझ में आता नहीं ये चक्कर क्या है
गुल समझता रहा जबकि गुले गुलज़ार है वो
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
A nice thoughtful poem....................