चोट लगती रही ज़ख्म खाते रहे
ज़िन्दगी के मज़े भी उठाते रहे
दाग़ लगने दिए न बुराई के हम
दामन अपना सदा ही बचाते रहे
मुश्किलों से भी तो हमने खेला किया
दर्द को भी तो अपने दबाते रहे
आप की बेरुखी से न बेचैन हुए
चैन से आपको भी मनाते रहे
सोच अपनी जहाँ से मुख़तलिफ़ ही सही
मुत्तफ़िक़ी के सबक हम सीखते रहे
चोट लगती रही ज़ख्म खाते रहे
ज़िन्दगी के मज़े भी उठाते रहे
Ek khoobsoorat ghazal........................................................
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Beautiful poem.....liked it....thank you for sharing :)