आप की अभुतपुर्व जीत Poem by Aftab Alam

आप की अभुतपुर्व जीत

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मैं डरा नहीं, मरा हूँ,
अपमान के चादर तले,
कई बार रोया हूँ,
दिल के दाग धोया हूँ,

मैं जगा नहीं, सोया हूँ
रात की कालिमा तले,
ख्वाबों के क़ब्र में,
मानवता को मार कर,

सम्प्रदायिक्ता की राजनिति को
सींचा है, इन्ही हाथों से, और,
सहिष्णुपता का घोटा है गला,
लोकतंत्र का चाहा है भला

हमारी पहचान
जाति- धर्म, हिंदू मुसलमान
अभीि कांग्रेस की सरकार है,
अभी भा ज पा की सरकर है,

नहीं ढूंढा किधर भारत सरकार है,
अपने हितों के आगे, बाक़ी हितो का,
क़त्ल किया है मैंने
मैं डरा नहीं, मरा हूँ,

मुसलमानों के खिलाफ बोलना अपराध ही नहीं
बल्कि अवसर है, एक अच्छे नेता बनने का,
चुनाव जीतने का, सत्ता पाने का..

आज आप की जीत ने सारे भ्रम को तोड़ते हुए,
इतिहास के पन्ने पर दर्ज करा दी है -
"सम्प्रदायिक्ता की राजनिति का अंत, और
सहिष्णुपता की राजनिति का आगाज़",

जब तक सम्पुर्ण समाज की नुमाइंदगी नही होती,
संसद में तब तक अधुरा रहेगा हमारा लोकतंत्र,
तब तक अधुरा रहेगा हमारा विकास,

Thursday, February 12, 2015
Topic(s) of this poem: poem
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Aftab Alam

Aftab Alam

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