ग़ज़ल
और दुनिया में कुछ कमी न हुई
और दुनिया में कुछ कमी न हुई
दिन हुआ दिल में रौशनी न हुई
सफर-ए-मंजिल ने ऐसा परीशां किया
पास आ कर भी हमको खुशी न हुई
तेरी नज़रों का हो गिला क्यों कर
दुश्मनी दिल से दुश्मनी न हुई
पास रह कर भी इतनी दूर हैं दिल
गोया ये इक्कीसवीं सदी न हुई
कहाँ पे जायेंगे ये काफ़िले ज़माने के,
इसकी तस्दीक भी सही सही न हुई
आखरी रोज़ हमपे ये राज़ फ़ाश हुआ,
ज़िंदगी ढंग की ज़िंदगी न हुई
न समझ आये यही बेहतर है ‘शरर'
हमसे क्योंकर भला नहीं न हुई
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(Faridabad, India)
(December 13,2014)
Poem composed in 1974 ('Sharar' is my pen name)
manzil ne niraash nahi kiyaa aapne mehnatkiyaa or sab kuchh paaya
Ek khoobsoorat rachna......सफर-ए-मंजिल ने ऐसा परीशां किया पास आ कर भी हमको खुशी न हुई.....waah waah. :)
अति सुन्दर भावपूर्ण सृजन..... आखरी रोज़ हमपे ये राज़ फ़ाश हुआ, ज़िंदगी ढंग की ज़िंदगी न हुई :)
सफर-ए-मंजिल ने ऐसा परीशां किया पास आ कर भी हमको खुशी न हुई...........खूब सुरती से शब्दों के माध्यम से दिल के मार्मिक आह्लाद को वर्णित करने के लिए शुक्रिया रजनीश भाई जी...आशा है की हमें और भी एईसी ही गज़ले पढ़ते रहने को मिलेगी कृपया आप लिखते रह्येगा
कविता के बारे में आपकी प्रशंसात्मक टिप्पणी के लिये आभारी हूँ, बहन पुष्पा जी.
कहाँ पे जायेंगे ये काफ़िले ज़माने के, इसकी तस्दीक भी सही सही न हुई भई, वाह! खूब.......शुक्रिया
कहाँ पे जायेंगे ये काफ़िले ज़माने के, इसकी तस्दीक भी सही सही न हुई भई, वाह! खूब.......शुक्रिया
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Awesome, Superb and Mind Blowing......................10++ कहाँ पे जायेंगे ये काफ़िले ज़माने के, ..................................... इन्हे कोई मंज़िलें भी मयस्सर न हुई (आज के दौर में यही हो रहा है मंज़िलों का पता नहीं फिर भी काफिले लेकर निकलते हैं)