हो गये श्रीहीन अस्थिर - चित्त हैं हम हाय माँ?
और कितने दिन सहें दुनिया के हम अन्याय माँ?
वो तेरे ही भक्त थे माँ जो सूलियों को चूमते.
सबकी खातिर मृत्यु का संस्पर्श ले कर झूमते.
स्वप्न उनकी आँख के ही स्वर्ग ले आते मगर,
पर आज उनकी तख्तियाँ शैतान ले कर घूमते.
दुश्मनों से देश का किंचित न मन भरमाय माँ.
और कितने दिन सहें दुनिया के हम अन्याय माँ?
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दुश्मनों से देश का किंचित न मन भरमाय माँ. और कितने दिन सहें दुनिया के हम अन्याय माँ? .... maa our nehin saha skenge, yee jarur unka madad karenge. It is a beautifu poem shared. Thanks.
Extremely pleased to receive your valuable comments on this poem. Thanks for your kind words, Kumarmani ji.