हर बशर की खुद से या औरों से जैसे होड़ है
सुब्ह से ले के शाम तक बस एक लंबी दौड़ है
किसको फुरसत है रुके थम के फिर आगे बढ़े
है खेल सारा मालो ज़र का बस यही निचोड़ है
नपे तुले शब्दों मे जिंदगी का सार बयान कर दिया है श्रीमान. बहुत खूब.
इस कविता को पढ़ने व इस पर अपनी सुंदर समीक्षात्मक टिप्पणी देने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.
We all are running for money and that's reason of all corruptions.
बहुत उम्दा....दुनिया महज़ एक दौड़ बन के रह गयी है....जिसे भी देखा बस मालो ज़र जमा करते देखा..इंसानियत रह गयी पीछे पशेमां और पोशीदा, धन्यवाद राजनीशजी, पढ़ कर अच्छा लगा.10++++
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नपे तुले शब्दों मे जिंदगी का सार बयान कर दिया है श्रीमान. बहुत खूब.