वो हीरे मोतियों जैसी ग़ज़ल इरसाल करता है
हमारा दोस्त हमको रोज़ मालामाल करता है
सवेरे उठ के खुद में डूबने की उसको आदत है
नए अंदाज़ में सूरज का इस्तक़बाल करता है
वो सूफ़ी है बज़रिये रूह रब से रू-ब-रू हो कर
हमारे दिल की पामाली को वो पामाल करता है
शब्दार्थ:
इरसाल = प्रेषित करना / इस्तक़बाल = अभिवादन करना / पामाली = बरबादी, नाश
दिलकश नज़ारा! ईन नज़राना-ए-अक़ीदत उमदह अस्त! सूफ़ी दोस्त को इक सूफ़ियाना तोहफ़ा।
Sunrise is wonderfully presented and praised in this poem. Nice tribute is given to poet friend. A true friend feels always another friend. Nicely penned.! ..10
So kind of you to have read this poem and for having appreciated it. Thanks a lot, Kumarmani ji.
Sifis have always given a message of love for all. A lovely poem.
बहुत बढ़िया....एक सच्चा मित्र ही अपने मित्र की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए उसकी खूबियों को दुनिया से समक्ष रखता है...आप में छुपी मित्रता की भावना को देख कर बहुत ख़ुशी हुई....धन्यवाद - राजनीशजी....1000+
आपने कविता के मर्म तक पहुँच कर बहुत सुंदर समीक्षा की है. बहुत बहुत धन्यवाद, मो. आसिम जी.
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दिलकश नज़ारा! ईन नज़राने-ये-अक़ीदत उम्दे अस्त! सूफ़ी दोस्त को इक सूफ़ियाना तोहफ़ा।