(1)
तू उदार है
गलती मेरी ही थी
निगल ना पाया रोटी का
जब खुश्क निवाला
हाथ बढ़ा कर लगा मांगने
तुझ से जल का प्याला.
तू उदार है तुझसे मेरी
प्यास सहन हो पायी न.
तूने अपना सागर
मेरे लोटे में डाल दिया,
तूने सोचा मैं अगस्त्य हूँ.
तेरी दया का में समुचित
सम्मान न कर पाया
मैं अगस्त्य नहीं था न ही
मैं अगस्त्य का नाटक
दोहराने को प्रतिबद्ध हुआ
सारी बस्ती मेरी
जल-प्लावन की त्रासदी बन कर
मेरे लोटे की हदों पर
रो-रो के खिलखिलाती रही,
मेरे तमगे जहाँ थे वहीँ पे रखे रहे.
यह थी मजबूरी,
एक संत्रास था
जो मेरा जीवन दर्शन
दे रहा था मुझे रात-दिन.
ये वो जीवन दर्शन है
जिसने सदियों जंगली बेल बूटे
उखाड़े साफ़ किये
ज़मीन सरसब्ज़ बनायी
किया हमवार
आदमी के रहने लायक.
यह पाँच दस या सौ दो सौ वर्षों की
बात नहीं
हज़ारों वर्ष का
साँस लेता हुआ इतिहास है.
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(2)
इस जीवन दर्शन ने देखा है
हिम युग, प्रस्तर युग, ताम्र युग
और लौह युग
जिनके सांचों में ढल कर
मैं चौपायों के खेमे से बाहर आ कर
अपनी स्वतंत्र इकाई ले कर चल पाया.
आदिकाल की आदिम अभिवृत्ति
और अनुशासनहीन ऐषणाओं को
बना कर पालतू
लोक जीवन और संस्कृति का
अन्वेषक बन पाया.
मैं बहुत दूर तक चला आया हूँ.
इतना चल लेने के बाद जब
मुझे थकान की हुयी प्रतीति
तब जा कर मेरा जीवन दर्शन
विज्ञान दर्शन से राय लगा लेने
बदलने लगी मेरी गति,
दिशा और स्थिति
और बदली आस्थाएं, मान्यताएं,
धर्म के प्रतिमान
भौतिकता के बैरोमीटर से
गणनाएं होने लगीं.
कार्य से कारण की खोज होने लगी
कारण से कार्य का पता
लगने लगा,
शोध होते रहे और छपते रहे.
आदमी, यानि कि मैं
रोबोट बन कर जीने लगा.
मेरे दिमाग में जटिल सर्किट हैं
हाँ, खून की ज़रूरत कम ही पड़ती है
इसलिए खून –
खून पानी से कुछ ही महँगा है.
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(3)
इस प्रकार मेरा वो जीवन-दर्शन
विज्ञानं-दर्शन का अनुचर बन कर
अपना बोध क्षरित करता रहा, करता रहा.
मेरा रोबोटी अहं
प्रयोग शालाओं में बैठा हुआ
प्रकृति के सूक्ष्म नियमों को
तार तार करता रहा.
इस बीच
एक सुन्दर स्वप्न देखा मैंने
कि जब
तेरी दया मिली फिर से
मेरे कम्पूटर की संख्याएँ
लज्जावश जड़मान हो गईं.
अंगडाई ले कर उठा
चिरन्तन जीवन-दर्शन
मैंने देखा मेरे लोटे में
तेरा सागर आ सिमटा है.
पिछड़ा कौन?
विज्ञान-दर्शन अथवा आध्यात्म-दर्शन?
कोई नहीं –
न तो कोई विजित हुआ
न कोई पराजित.
मेरी दोनों आँखों में हैं दोनों दर्शन
और किया है धारण मैंने दोनों को दोनों बाहों में.
दो कपाल खण्डों में
दोनों दर्शन स्थापित.
निर्बाध और निर्द्वंद दोनों फलें फूलें.
गलबहियों में बंधे हुये ये दोनों झूलें.
और मैं
मैं सहसा अगस्त्य में
ढल जाता हूँ.
****i इति ****
Is kavita ke maadhayam se aapne phir Agatsya ko jeevit kar diya, Ek badhiya chitra aur charitra varnan kiya aapne...Ati Uttam Rajnishji.
मुझे खुशी है कि आपने कविता को इतने मनोयोग से पढ़ा और पसंद किया तथा उस पर अपनी धीर गंभीर टिप्पणी प्रस्तुत की. हार्दिक धन्यवाद, मो. आसिम जी.
The story of Sage Agastya so beautifully portrayed through a poem. The great Sages have vanquished several demons with their Yogic powers In the life of Kartikeya too, Agastya Muni plays a big part. Loved reading it in Hindi. Full 10...........
Thank you, Geeta ji, for reviewing and taking time to explain the relative mythological aspects so nicely.
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
A beautiful story of Agastya, so nicely narrated, i was amazed to read this philosophic poem.
Thanks for appreciating the poem, Akhtar Jawad Sahab.