(1)
झूठे वादों के गुलदस्ते,
भारी हैं पर खाली बस्ते.
इनको छू न सके महंगाई,
सरकारी धन में सेंध लगाईं.
पद पर थे तो छकी मलाई,
विकास फंड की पाई पाई.
लाभ के पद पर बापू-माई,
कहीं पे भैया, कहीं लुगाई.
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(2)
घर घर में पर्चे बंटवाये,
चमचों से डंके बजवाये.
व्यापारी भी खीज रहे हैं,
उद्योगपति भी छीज रहे हैं.
हड़प लिया सरकारी पैसा,
लौटाओ वैसे का वैसा.
दो नम्बर की दौलत आई,
खत्म हो गयी नेक कमाई.
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(3)
एल-1 के दरवाजे ओपन,
दारू के खुल जाते ढक्कन.
वोट बैंक तब चले सुचारू,
पीने को मिल जाये दारू.
मनभावन सा मन्त्र लिये,
लक्ष्मी जी का यन्त्र लिये.
हाथ जोड़ कर सब आयेंगे,
नये झुनझुने देकर जायेंगे.
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(4)
कोई सस्ती बिजली देगा,
कोई मुफ्त में पानी देगा.
नाना पकवान चखायेंगे,
सौ - सौ स्वर्ग दिखायेंगे.
योजनाओं का पैसा था,
सब भाप या धूयें जैसा था.
पता नहीं वह गया किधर,
पलक झपकते तितर-बितर.
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(5)
रंगे सियारों का जमघट है,
चारों और विकट संकट है.
क्या क्या नारे लगते हैं,
इनसे जनता को ठगते है.
मैं ये कर दूंगा वो कर दूंगा,
इन विषयों पर लेक्चर दूंगा.
श्रोताओं को खुश कर दूंगा,
मैं जनता का मन भर दूंगा.
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(6)
नोच नोच कर देश खा गये,
दलदल में दल हमें ढा गये.
भोली जनता के अपने थे,
टूट गये सपने, सपने थे! !
स्वप्न सुहाने चूर हो गये,
गिर कर चकनाचूर हो गये.
तलवारों के घाव भरे हैं,
पर शब्दों के ज़ख्म हरे हैं.
bahut hi satik varnan kiya hai aapne sir! ! aaj ke neta sach men wade-karna(Sabjbag-dikhlana) nahin bhulate hain - - - bhale bad men wade bhul jarur jate hain
Mere bhai Bhartiya neta to phirbhi behtar hayn, kabhi aakar Pakistani netaon ke kale kartoot dekhein. Lekin aapki yeh kavita bahut pasand aai.
Ati uttam, kya baat hai.....Maza aa gaya is sachchayi ko padhkar.10+++
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Beautifully and touchingly depicted on leadership and corruption. Beautiful poem on democracy shared. Thanks for sharing.
Thanks for a nice review of the poem and for your appreciative comments, Kumarmani ji.