वो सितम पर सितम हम पे ढाते रहे
हम भी ज़ख्मों पे मरहम लगाते रहे
पाँव जलते थे जब रेत पर आपके
आबला पा को हम तब छिपाते रहे
ज़िंदगी मौत का खेल चलता रहा
साँसें गिन गिन के हम भी बचाते रहे
जीत ली हमने बाजी मगर अश्के ग़म
क्यों मेरी आँख में झिलमिलाते रहे
तुमको जाते हुये देख कर यूँ लगा
हम हथेली पे सरसों उगाते रहे
Bahut hi khoobsoorat ghazal hay........................................
This poem is an excellent composition shared on really. Giving paint of ointment on surface of wound may recover this soon. While there is birth there is death. This is wisely penned poem.10
You have so nicely summed up the sentiments expressed in this poem and also added more value to it. Thanks a lot, Kumarmani ji.
ज़िन्दगी के फलसफों में बने कुछ अलफ़ाज़ जो दिल की गहराईयों से निकल कर कलमबंद हो गए...एक बेहद उम्दा नज़्म....क्या बात है श्री राजनीशजी मेरी पसंदीदा नज़्म में शामिल होगी... १०++ जीत ली हमने बाजी मगर अश्के ग़म क्यों मेरी आँख में झिलमिलाते रहे तुमको जाते हुये देख कर यूँ लगा हम हथेली पे सरसों उगाते रहे
आपने अपने सुंदर शब्दों में प्रशंसा के साथ साथ उक्त कविता का सार तत्व भी बहुत अच्छी प्रकार से दर्ज किया है. मुझे धन्यवाद के उचित शब्द ही नहीं मिल रहे, मित्र मो. आसिम जी.
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गजल हमारे जीवनपर सहि हे ।
आपकी कविता की तरह आपकी टिप्पणियाँ भी बेहद खुबसूरत हैं. आपका अतिशय धन्यवाद.