भारत को बचा लो
जनमत के लुटेरों से भारत को बचा लो, जागो वतन के नौजवां ये देश संभालो.
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मेरी कलम से: रविवार की पूर्व संध्या पर एक गीत -
आज़ रविवार है
जरा दिल से मुस्कराओ कि आज़ रविवार है |
गीत छुट्टियों के गाओ कि आज़ रविवार है |
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जागो! हे, मतदाता जागो!
भारत भाग्य-विधाता जागो!
लोकतंत्र के पालनहारे.
हे, सत्ता के दाता जागो!
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एम पी के बुढ़ऊ आका
रंगे हाथ वो गिरफ्तार हैं डाल रहे थे हुस्न पे डाका.
बड़बोले भोपूजी गुप-चुप मचा रहे थे धूम-धड़ाका.
लाज-शर्म सब घोल पी गए ले ली है इज्जत से कट्टी.
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Congrats! Congrats! Today is Sunday.
Out of seven we have one day.
It’s a day of our independence.
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प्रभु जी करवा दा हो सेलरिया,
बनिया टोकय बीच बजरिया.
जेब ह खाली हाथ ह खाली.
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हँसती और खिलखिलाती आती हैं छुट्टियाँ,
हर गम को यारों दूर भगाती हैं छुट्टियाँ.
बच्चे हों या बड़े हों सबको ये दिल से प्यारी,
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सोती उठती जगती थी मैं मृदुल नेह की छावों में.
भटक गया मेरा मन प्रियतम स्मृतियों के गांवों में.
अलकों-पलकों बिंदिया में उलझे दो नयना मतवारे,
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मेरे द्वारा किये गये एक शोध से
ताल ठोंकते हुए यह धमाकेदार सत्य सामने आया है
और अनुभववादियों ने भी डंके की चोट पर बताया है
कि -
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धमाचौकड़ी है दिल्ली में, सकल देश में अंधियाला.
काट रहे वो दूध-मलाई, मचा रहे हैं गड़बड़झाला.
चोर-लुटेरों की पौ-बारह, जन-गण-मन के बजते बारह.
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दीप दिल में जलाओ तो कोई बात बने.
अँधेरे मन के मिटाओ तो कोई बात बने.
दुश्मनी देती नहीं कुछ भी बर्बादी के सिवा.
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एक रात
रसोई में रोटी बना रही मम्मी से
लाड़ला बेटा ज़िद करने लगा.
मचलने लगा
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छीनय मुँह क निवाला हरजाई.
उफरि परय एइसन मंहगाई.
लागल बज़रिया में आग़ मोरे भईया.
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अकड़ न ज्यादा दिखा न नखड़े बन जा अब दुमछल्ले.
धीरे-धीरे कल्ले -कल्ले हो जाएगी बल्ले-बल्ले
गर्ल फ्रेंड को गुडबॉय कह, भूल जा यारा यारी.
साले-साली की सेवा की कर तू अब तैयारी.
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हांफते-कांपते विधायक जी पीठ सहलाते हुए
दुम दबाके घर से बाहर भागे
और सुरक्षात्मक दूरी पर जाकर
करने लगे धमाके -
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वह गरीब था
मगर, आले दर्जे का धूर्त, निकम्मा,
मक्कारऔर आवारा था,
दो टूक शब्दों में कहें तो –
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मचल आयी जो चेहरे पर घनेरी ज़ुल्फ ये काली.
घुमड़ आयी है चंदा पर घटा सावन की मतवाली.
मेरा महबूब ऐसा है निगाहें उस पे मरती हैं.
बला का हुस्न है ज़ालिम अदाएं कत्ल करती हैं.
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भारत को बचा लो
भारत को बचा लो
जनमत के लुटेरों से भारत को बचा लो, जागो वतन के नौजवां ये देश संभालो.
सत्ता कि जोड़-तोड़ में जनता है दांव पर, सारा शहर सवार है किस्मत की नाव पर.
भगवान भरोसे अब तो चल रही है नईया, पतवार बेचते हैं कश्ती के वो खेवइया.
मझधार में अटकी हुई नईया को निकालो.
जागो वतन के नौजवां ये देश संभालो.
साहिल के खोज की हर कोशिश तमाम है, गाँधी के देश में अब जीना हराम है
बरबादियों के मंज़र हर ओर उठ रहे हैं, अरमान शहीदों के भारत में लुट रहे हैं.
तुम जुस्तज़ू को उनकी सच्चाइयों में ढालो.
जागो वतन के नौजवां ये देश संभालो.
मन्दिर वो लोकतंत्र का संसद बनी अखाड़ा, हैं कोशिशें बस इतनी किसने किसे पछाड़ा.
ये राजनीति है अब हिन्दोस्तां पे भारी, अब लोकतंत्र कर रहा है सिंह की सवारी.
इन मुश्किलों के बीच नई रह निकालो.
जागो वतन के नौजवां ये देश संभालो.
बलिदानियों ने जिसको अपने लहू से सींचा, हैं रहनुमा उजाड़ते देखो वही बगीचा.
रखना है सलामत ये आज़ाद भगत सिंह का चमन, जिसकी माटी को देवता भी करते हैं नमन
कंधों पे अहले वतन का अब भार उठा लो.
जागो वतन के नौजवां ये देश संभालो.
घर के चिराग ख़ुद के घर को जला रहे हैं, आ बैल मुझे मार यूँ आफत बुला रहें हैं.
गुमराह हो रही है अब हिन्द की ज़वानी, देखो पनाह मांगती है कैसे जिंदगानी.
मज़लूम बेकसों को सीने से लगा लो.
जागो वतन के नौजवां ये देश संभालो.
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’
very good sir g...keep it up...we want your more poem...your poem always give a good massage...
What a nice Poem! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! !
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