Amrit Pal Singh Gogia Poems

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31.
A-073. तुम कहते हो

तुम कहते हो 8.4.16—4.54 PM

तुम कहते हो तुम प्यार करते हो
इसीलिए मेरा इंतज़ार करते हो
...

क्या इसी को प्यार कहते हैं 8-7-15—6.45 AM

वो धक्कम धकेल
वो चूहों का खेल
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33.
A-061. मैं हिंदी हूँ

मैं हिंदी हूँ -18.9.15—4.24PM

मैं हिंदी हूँ
भारत की राष्ट्रभाषा हूँ, हर घर की मातृभाषा हूँ
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34.
A-012. जब तुम आये थे

जब तुम आये थे 10.5.16—7.20 AM

जब तुम आये थे मचलते हुए मेरी बाँहों में
कितनी ख़ुशी बिखरी थी न तेरी अदाओं में
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35.
A-031. दुःख है तेरा

दुःख है तेरा 11.5.16—6.03 AM

दुःख है तेरा इस कदर दूर जाने का
रहेगा इंतज़ार फिर से तुम्हें पाने का
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36.
A-047. क्या देखते हो

क्या देखते हो 26.5.16-5.57 AM

क्या देखते हो मैं वही हूँ बस! ! !
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37.
A-143. हर शाख के पत्ते

हर शाख के पत्ते 27.5.16- 7.38 AM


हर शाख के पत्ते मुस्करा रहे थे
...

38.
A-078. कैसे इंकार करोगे

कैसे इंकार करोगे 29.5.16—5.07 AM

क्या बात करोगे किसकी बात करोगे
वही पुराना कचरा फिर आबाद करोगे
...

39.
A-090. नए रास्ते की तलाश

नए रास्ते की तलाश 14.2.16—10.12 AM
(मेरे एक नए दोस्त को समर्पित)

नए रास्ते की तलाश
...

सब भाषा की उत्पत्ति हैं 20.1.16—6.24 AM

जितनी भी बाधाएँ हैं
अपनी ही सीमाएं हैं
...

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