Sonnet 28: How Can I Then Return In Happy Plight -
Poem by William Shakespeare
कैसे मै लौट आऊं प्रसन्नचित में उस दुर्दशा से
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अभी तो साँझ ने आकर महज़ दस्तक दी है
अभी पंछियों का घौसलों में लौटना बाक़ी है
अभी सूरज कि शाओं में कुछ हरारत बाक़ी है
अभी तो चाँद ठहरा है, ज़रा तुम भी ठहर जाओ
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नैनों की डोरी से दिल की पतंग उड़ा रहा है 'कोई'
इस अंजनी दुनिया में अपना नज़र आ रहा है 'कोई '
ख्याल नहीं आते थे रातों को भी कभी
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मुद्दत से देखता हूँ तुम्हे
जानता नही हूँ, कब आये, किस लिये
और क्या चाहते हो
लगते तो अपने हो, कौन हो तुम?
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वो जो फिर न आने की क़सम खा के चला गया
वो क्यों लौट आया?
कभी यादों का झोका बन के, कभी टूटे हुए वादों सा
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न तू कभी बनके रहना एक नींव का पत्थर,
तुझे तो बनते जाना है एक मील का पत्थर,
तेरी हर कठोरता में, मै तो बस यही देखूं
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ग़म की दुनिया
सितारों से भरी है
या आंसुओं से
क्या फर्क पड़ता है
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ये दिल बहल जाता है उनकी आँखों की शरारत से
मैं जानता हूँ इसको, ये शैतान बहुत है
अरमान बहुत रखता है, उड़ने की हवाओं में
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शाख़ पर बैठा एक परिंदा हूँ मैं
लम्बे सफर से लौटा एक बंदा हूँ मैं
क्या शिकार करोगे अब तुम मेरा
हवा के झोके से ही गिर जाऊँगा
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Log milte hain bichhad jaate hain,
Phool khilte hain bikhar jaate hain,
Dhoop nikalti hain dhal jaati hain,
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Aankhon ki sharm mit gayi aur khoon safed ho gaya
Aaj ke daur mein rishton ka silsila bhi kuch ajeeb ho gaya
Milawat fiza mein thi toh phool kahan khilte
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तन्हाई नेमुझ से कहा
हमसफ़रबनालो मुझे
परछाईने मुझ सेकहा
मैसाथ हूँ तुम्हारे
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Ay raaste, zara manzil ka pata de
Kuch nahi to itna bata de
Kya koi bhi kabhi
Tujh pe chala hai
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Seeshe ka anaa woh lekar bhi patthar ka jigar hi rakhte hain
Samjha tha unhe mai apna hi beganon sa sabab woh rakhte hain
Matlab ke liye is duniya mein, kya kya jatan woh karte hain
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Jo bo o ge wo paoge
phir kis ka kare mala ho tum
Bechain hoon main betaab hai tu
yeh kaisi uljhan hai humko
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